विचार छत्तीस
दिमाग़ में
गुत्थमगुत्था एक दूसरे से।
एक का सिरा पकड़ो
तो साथ आ जाते हैं छः और !
जैसे जलकुम्भी की जड़ें
भीतर-भीतर फँसाये रखती हैं
एक दूसरे को
कि कोई अकेले न निकल जाये बाहर।
क्या ख़ाक नाटक लिखूँगा ?
एक दृश्य निकलता है मन के पार्श्व से
तो चार और करने लगते हैं धक्का-मुक्की,
कि मानो उन्हें भी बस उसी वक़्त
आना हो मंच पर।
एक को सम्हालता हूँ
तो दूसरे करने लगते हैं हल्ला-गुल्ला
कि हम भी तो सच्चाई हैं
इसी वक़्त की,
उतने ही मौज़ू,
हमें कब रखोगे केंद्र में?
हम जो बाहर भी हैं हाशिये पर,
क्या मंच पर भी रह जाएंगे
नेपथ्य में ही ?
कैसे लाऊं एक साथ भाई ?
हँसी-ठट्ठा हो
तो कोई कर भी ले
एक साथ बत्तीस,
पर दुःख, पीड़ा, कसक,
एक ही पड़ जाती है भारी
एक समय में,
अगर उतर सके गहरे
ऐन मंच पर।
ऊपर से शब्दों की,
शब्द-बिम्ब की
क़दर नहीं कुछ ख़ास है अब।
दृश्य चाहिए।
दृश्य भी ऐसे गति हो जिनमें।
काठ के पुतले अभिनेता की
अनियत, लयपूर्ण सी गतियाँ,
उपकरणों के संग प्रकाश की,
तस्वीरों, चलचित्र की गतियाँ।
इनके बीच कथा के सूत्र
कोई अगर बचा पाए तो
बात अलग है।
वरना सबकी कथा अलग है
लेखक, अभिनेता, निर्देशक की,
घंटे भर को सीट में अटके
फेसबुक के अपडेट्स देखते
सम्मानित सहृदय दर्शक की
व्यथा अलग है।
और यहाँ शब्दों की बारिश !
लहू सने दृश्यों की बारिश !
न सुनी गयी आवाज़ें
जो चीख़ रहीं जाने कबसे
गिरती हैं ओलों की तरह।
खेत, शहर, क़स्बों, गाँवों
जंगल, सरहद से उठती हूक,
जो संसद सुनती है नहीं,
उसे भला लोगों के बीच
सीधा-सीधा क्यों न रखूँ?
सौ अर्थों के लोभ में कैसे
उलझा दूँ उनकी ये कथा ?
माना सच के कई पहलू हैं
पर अपना पहलू भी तो हो?
अपनी तरफ़ से देखे सच को
ठोंक बजाकर परखे सच को
ठोंक बजाकर परखे सच को
शब्दों-दृश्यों में गूँथ और गढ़कर
सबसे ज़रूरी अर्थ के संग
कह देना क्या कला नहीं है?
अगर नहीं तो माफ़ करो फिर
कलाकार होने का दावा
वैसे भी करता ही नहीं,
पर छान जलेबी रीढ़ की अपनी
उन सारे शब्द-अर्थ-दृश्यों को
और उनकी उस हूक को सारी
कलाकार होने की ललक में
कैसे गोली दे दूँ?
- आशुतोष चन्दन
3 comments:
वाह!
आ ही जाने दो सबको एक साथ
वे स्वयं तय कर लेंगे फिर अपना क्रम और अपना प्रकरण...
बहुत ही सुंदर है। आगे इसे रंगमंच पर वाद-विवाद के लिए उपयुक्त किया जा सकता है। जहां कोई भी रंगकर्मी/रंगकर्म से संबंधित विषयों पर अपना विचार रख सकते हैं । आसुतोष आप को तहे दिल से बधाई और शुक्रिया, रंगमंच के हित में सराहनीय प्रयास केलिए।
wahhhhhhhhhh
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