Monday, February 25, 2019

ख़ुदा..आदमीयत ...और हम


ख़ुदा..आदमीयत ...और हम 

ये हिंदी ये उर्दू ये इंग्लिश के मेले
ज़ुबानों- अदीबों के लाखों झमेले
हैं ढूंढें नज़र अब ज़हनियत कहाँ है
है ढूँढे नज़र आदमीयत कहाँ है।

हैं जिनके भी पेट भरे ,जेबें ऊंची
उन्हें इंक़लाबों से मुश्किल तो होगी
डॉलर-दीनारों की बारिश है जिनपर
ऐशों-आरामों की ख्वाहिश है जिनको
उन्हें कुछ बदलने की चाहत क्यों होगी
दुआएं,सभाएं और प्रार्थनाएं
बहाने पुराने हैं उन वाइज़ों के                         
असल बात हैं उनमें हिम्मत कहाँ है
है ढूँढे नज़र आदमीयत कहाँ है।

ये मंदिर ये मस्ज़िद ये गुरुद्वारे गिरजे
नहीं है नहीं है ख़ुदा अब कहीं पे 
ख़ुदा ग़र जो होता ये आलम न होता
न होती ये नफ़रत, ये दंगे न होते
न होते कहीं चन्द दौलत के पुतले 
करोड़ों यहाँ भूखे नंगे न होते
ये तक़रीरें-प्रवचन,ये वाइज़ ये पण्डे
ये फ़तवे-ये भाषण, ये तलवार-ओ-नेज़ें
कहीं पर धरम की दुकानें न सजतीं
ये सिसकी, ये आँसू , ये चीखें न होतीं
न दंगों में लुटती कहीं  कोई अस्मत
अनाथों सी होकर ये माँएं न रोतीं।

लिखा है अगर ये ईश्वर की है मर्ज़ी
जला दो धरम  की वो सारी किताबें
ख़ुदा ग़र मोहब्बत का है नाम दूजा
तो उसकी नज़र ऐसी वहशी न होगी
अगर ढूँढना है तुम्हें कुछ कहीं भी
तो ख़ुद में तलाशो मोहब्बत है कितनी
कि तुममें बची आदमीयत है कितनी
ये मजलिस-सभाएं, ये रथ-यात्राएँ
ये पहचानो इन सब की नीयत में क्या है
कि इंसां को इनकी ज़रुरत कहाँ है ?

बस ख्वाबों-ख़यालों में सुन्दर है दुनिया
या बंगलों के अन्दर ही सुन्दर है दुनिया
बाहर तो दुनिया में है भूख पसरी
दहशत से दुनिया है सहमी  औ सिहरी 
है जिनकी भी  मुट्ठी में दौलत या ताक़त
उन्हीं के लिए ख़ूबसूरत है दुनिया।

ये सब जानते हैं, सो सब भागते हैं
सभी दौड़ में हैं, ये सब जानते है
ये सारी क़वायद है पाने की केवल
उस दौलत की दुनिया का छोटा सा कोना
उस ताक़त की दुनिया का छोटा सा कोना
वो दुनिया जो  मखमल मुलायम है दिखती
वो दुनिया जो चमके है रंग-बिरंगी
इस चमकीली मखमल की रंगत के पीछे
दबे हैं जहाँ  के गरीबों के आँसू
उनके लहू और पसीने की सुर्खी।

ये सब जानते हैं ये वाज़िब नहीं है
ये सब मानते हैं ये जायज़ नहीं है
ये सब कुछ बदल जाए
सब चाहते हैं
अमन ही अमन हो
ये सबकी है ख्वाहिश
मगर कुछ बदलने की
कुछ कर गुजरने की
फुर्सत कहाँ है ?
बहाने बनाने की आदत हुनर है
असल बात ये है ,अहम बात ये है
कि दुनिया बदलने की
कुछ कर गुजरने की
हिम्मत कहाँ है ?
है ढूँढे नज़र आदमीयत कहाँ है।

                      - आशुतोष चन्दन

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