Monday, February 25, 2019

ग़ज़ल

कल हक़ीक़त में नज़र आएंगी मुझको रोटियाँ
आज फिर इक बार वो ये सोचकर सो जाएगा।

भगवान है, दिखता नहीं, हमने सुना बचपन से है
इंसान भी बस कुछ दिनों में गुमशुदा हो जाएगा।

सच की ख़ातिर मर मिटो हर धर्म है कहता मग़र
क्या ख़बर थी धर्म का मतलब जुदा हो जाएगा।

क़त्ल करना ही अगर मज़हब है सबके वास्ते
कल कोई क़ातिल यहाँ शायद ख़ुदा हो जाएगा।

क़त्ल कर दे तू मुझे भी गर यही है धरम तेरा
मेरे मज़हब का भी कुछ तो हक़ अदा हो जाएगा।

हम अगर हों साथ तो आएगा फिर से इंक़लाब
ज़र्रा ज़र्रा मुल्क़ का आतिशफ़िशां हो जाएगा।

हाथ दो और हाथ लो फिर दिल मिला कर देख लो
देखते ही देखते इक कारवाँ हो जाएगा।

वक़्त है अब भी सम्हल जा तू वगर्ना एक दिन
वक़्त के तूफ़ान में तन्हा कहीं खो जाएगा।

आशुतोष चन्दन

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