Friday, September 18, 2020

अफ़वाह



बेरोज़गारी एक अफ़वाह है। 

ठीक वैसे ही 

जैसे अफ़वाह है 

कि देश में लोकतंत्र, 

न्याय और अर्थव्यवस्था का हाल अच्छा नहीं है।

जबकि लहलहाते खेत में खड़े किसान

कृषि प्रधान देश पर निबंध पढ़ रहे हैं,

योजनाएं 

उनके दरवाज़े पर हाथ बाँधे खड़ी हैं,

मंत्री जी के साथ।


सड़कों, ऑफ़िसों, घरों

और संबंधों में सुरक्षित हैं

छह महीने की बच्ची से लेकर 

नब्बे साल तक की औरतें। 

ख़ुश हैं। 


बचपन 

सपनों की दुनिया सा

खिलखिलाता झूम रहा है।

ढाबों पर, ठेलों पर,

कारख़ानों, दुकानों पर

केवल अफ़वाहें हैं,

ध्यान ना दें उधर!

भविष्य 

आशान्वित है। 


शिक्षा अपने उद्देश्य के एकदम क़रीब है

और डिग्री के साथ ही चस्पा है

रोज़गार की गारंटी।

भ्रष्टाचार पिछले ज़माने की बात है।

घोटाले मिथ हैं।

वंशवाद 

हमारी चहारदीवारी के पार का मामला

और जातिवाद 

सरासर झूठ है। 


धर्म नफ़रत नहीं सिखाता

और दुनिया भर के धर्म-ध्वजाधारक

हाथों में फूल लिए फिरते हैं

जिसे मौक़ा आने पर उतार देते हैं

सामने वाले के सीने में

पूरी उदारता के साथ।

सहिष्णु होते हैं। 


अमीर-ग़रीब के बीच 

कहीं कोई खाई नहीं,

सब अपनी मेहनत के 

हिसाब से कमाते हैं।

(बस आपको पता नहीं,

लोग कितनी तिकड़म लगाते हैं

झुग्गियों में रहते हुए मर जाने के लिए।)


दुनिया में कर्म-फल मिलता है सबको ही।

सारे बलात्कारी, 

युद्ध के अपराधी सब,

सारे ही धनपशु,

घृणा के पुजारी सब

कर्म-फल भोगते हैं,

भोग कर ही जाते हैं।।


सबकुछ तो अच्छा है

दुनिया में, 

देश में !

बाक़ी अपराध सारे

आदमख़ोर युद्ध और 

शोषण के क़िस्से सब,

धर्मगत-जातिगत द्वेष और हत्याएं,

टूटते हुए सपने 

रोटी के, रोज़ी के,

सैकड़ों, हज़ार मील लोग भटकते हुए,

फंदों पर झूलते किसान-नौजवान सब

कोरी अफ़वाहें हैं।


ज़मीर का मर जाना केवल कहावत है,

ज़मीर के मरने से कोई नहीं मरता है,

लाखों करोड़ लोग दुनिया में ज़िंदा हैं,

ज़मीर अफ़वाह है ख़ुद अपने आप में।

अफ़वाह हैं सड़कों पर उतरे हुए लोग ये

मानवाधिकार पर चोट अफ़वाह है

संघर्ष अफ़वाह है, क्रान्तियाँ अफ़वाह हैं

अफ़वाह है कि दुनिया ये बदली जा सकती है

ऐसी अफ़वाहों पर ध्यान मत दीजिये।


सत्ता ही 

दुनिया में 

एक मात्र सत्य है।



- आशुतोष चन्दन

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