बस अभी पाँच मिनट पहले एक हादसा टाइप चीज़ हुई। मैं छत पर टहल रहा था कि तभी आसमान में एक उड़ती हुई चीज़ दिखी, इधर से उधर चक्कर मारते हुए। मैं मोबाइल कैमरा से ज़ूम करके देखने की कोशिश करने लगा। मुझे लगा वो चीज़ मेरी तरफ़ आ रही है। जब तक मैं कुछ और सोच पाता, वो चीज़ ठीक मेरे सामने आकर रुकी। मैं शॉक्ड था। सामने साक्षात् प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल ! "प्रभूऊऊऊ"...मेरे मुँह से अभी इतना ही निकला था कि प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल उवाच;
- "चुप बे! पहले ये बताओ, ये तुम्हारी मुंडी के चारों ओर आभामंडल कैसा है? जैसे सीरियल में दिखाते हैं देवताओं-ऋषियों की मुंडी के चारों ओर ? सारा कंसन्ट्रेशन ख़राब कर दिया मेरा उधर ऊपर !"
मैंने भरसक विनम्र होकर कहा -" प्रभूऊऊऊ.....वो तो ...हें हें ..."
" हें हें नहीं, तुरंत बताओ , सीधे-सीधे। शाम हो रही है और हम टॉर्च-वार्च नहीं लाये हैं। काम रह जाएगा मेरा !" - प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल बीच में ही बोल पड़े।
मैंने तुरंत उगल दिया - " तत्वज्ञान ! तत्त्वज्ञान मिल गया है मुझे।"
"तत्त्वज्ञान ?" प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल गॉट शॉक्ड! अगेन उवाच ;
- " पर तुम्हें कैसे ?...ख़ैर कौन सा?"
मैनें कहा - " यस प्रभूऊऊऊ तत्त्वज्ञान ! तत्त्वज्ञान ये है कि इनवर्टेड कॉमा में " जवान होती लड़की और बुढ़ा रहे लड़के के जीवन में एक ही क्वालिटी की चरस बोई जाती है। शादी वाली। हाँ बुआई की विधि को लेकर विद्वानों में मतभेद हो सकता है!" इनवर्टेड कॉमा क्लोज़्ड। "
सन्निपात समझते हैं आप लोग? वैसा ही कुछ हो गया प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल को। मैं छींटा मारने के लिये पानी की टंकी का ढक्कन खोल ही रहा था कि प्रभूऊऊऊ बोल पड़े - " पानी रहने दो वत्स। अब तो नीट ही पीना ...'
सडेलनी ही रियलाइज़्ड हिज फ़ॉल्ट।
प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल लगभग बिसूरते हुए उवाच - " पर मुझे क्यों नहीं हुआ ये तत्त्वज्ञान?"
मैंने कहा - " जी छोटा न करें प्रभूऊऊऊ। आप बाई डिफॉल्ट एलिजेबल नहीं है इसके लिए।"
"माने ?" - प्रभूऊऊऊ ने अपने उत्तरीय से अपनी बहती नाक पोंछकर सुबुकते हुए पूछा।
"आपके रिश्तेदार हैं?" - मैंने पूछा।
"भक बे ! हम अवतार हैं।"- प्रभूऊऊऊ ने त्वरित प्रतिक्रिया दी।
मैंने कहा - " बस्स ! इसीलिये आप इस तत्त्वज्ञान से वंचित रह गए।"
सुनकर प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल हर्षित हुए। बाँछें खिल गयीं उनकी, माने जहाँ पर भी होती हों। बोले ;
" तब तो सही है रजा! बच गये। हमारी तो टीआरपी ही डूब जाती। अच्छा एक काम करो, मुझे टॉर्च दो ...मुझे टॉर्च दो ...मुझे टॉर्च दो !"
" ये तीन बार बोलना ज़रूरी था ? मैं तो एक ही बार में दे देता।"- मैंने सोचा।
ख़ैर मैंने लाकर टॉर्च दी। प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल उड़ने को हुए ही थे कि मैं पूछ पड़ा - " लेकिन आप ये चकरघिन्नी की तरह उड़ते क्यों फिर रहे थे प्रभूऊऊऊ ?"
" हवा से ऑक्सीजन 'शक' कर रहा था। डायरेक्ट ! बिना टरबाइन के। एक आध पाव चाहिए हो तो बोलना, कल दे देंगे ! " ऐसा बोलकर प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल सोंय से उड़ गए।
मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। अचानक एहसास हुआ, एक आदमी अट्ठारह-अट्ठारह घंटे मेहनत कर रहा है ऑक्सीजन 'शक' करने के लिए और मैं यहाँ मुँह खोल खड़ा हूँ। एक ग्राम भी कम हो गया उसके कोटे में तो कहीं मुझ से ही वसूलने न आ जाय! मैं तुरंत मुँह बंद करके छत से उतर आया।
आप कहेंगे इसमें हादसा वाली बात क्या है? मैं पूछता हूँ साइंस के लिए क्या ये हादसे से कम है ?
( इति श्री हर्फ़ूलाल पुराण द्वितीयो अध्याय समाप्त:)
- आशुतोष चन्दन
(प्रभूऊऊऊ हर्फ़ूलाल , 'हर्फ़ूलाल पुराण: प्रथम अध्याय' में अवतरित नाटकीय चरित्र है। किसी मृत या मिथकीय चरित्र से इसकी कोई समानता नहीं। जीवित से निकल आये तो ....अंटी बंटी संटी !)