पूर्वरंग / Poorvarang

Monday, October 12, 2020

तत्त्वज्ञान उर्फ़ हर्फ़ूलाल पुराण - द्वितीय अध्याय

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बस अभी पाँच मिनट पहले एक हादसा टाइप चीज़ हुई। मैं छत पर टहल रहा था कि तभी आसमान में एक उड़ती हुई चीज़ दिखी, इधर से उधर चक्कर मारते हुए। मैं मोब...
Thursday, October 8, 2020

शगुन

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  मुझको जनता का हरकारा होना था, कविता क़िस्से ग़ज़लें नाटक लिये-लिये गाँव-शहर-क़स्बों-बस्ती में फिरना था। नहीं, यही इक फ़न का रस्ता नहीं है कोई प...
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Monday, September 21, 2020

मैं मांस खाता हूँ।

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  मैं मांस खाता हूँ। अक्सर शाकाहारी लोग पूछते हैं सवाल, समझाते हैं अपराधबोध की सीमा तक, जो मुझे होता नहीं। अलबत्ता किसी ने कभी नहीं बताया ...
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Friday, September 18, 2020

अफ़वाह

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बेरोज़गारी एक अफ़वाह है।  ठीक वैसे ही  जैसे अफ़वाह है  कि देश में लोकतंत्र,  न्याय और अर्थव्यवस्था का हाल अच्छा नहीं है। जबकि लहलहाते खेत में ख...
Monday, September 14, 2020

मेरी ज़ुबाँ में सब शामिल हैं

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मेरी ज़ुबाँ में सब शामिल हैं, सबमें आता-जाता हूँ सबसे होकर मेरा रस्ता, मुझ तक मुझको लाता है। दुनिया भर में कभी किसी भाषा का अचार नहीं डाला जा...
Friday, September 11, 2020

चार दृश्य : मुक्तिबोध

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मुक्तिबोध : पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ? साहित्य, कला, संस्कृति के निष्पक्ष अलंबरदार : हैं जी ? पॉलिटक्स ? वो क्यों ? माने पॉलिटक्स ...
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Friday, May 8, 2020

दो नॉनवेजिटेरियंस की वार्ता।*

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- 'जिसका हृदय उतना मलिन, जितना कि शीर्ष     वलक्ष है' - ये किसने लिखा ? - ये दिनकर ने लिखा था 'कुरुक्षेत्र' में। ...
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Sunday, July 28, 2019

राष्ट्र को ख़तरा हमारे प्रश्न से है !

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राष्ट्र कभी नहीं मरता। राष्ट्र की सीमाएं/ परिभाषाएं जवान होती चलती हैं। बचा रहता है गौरव-गान  घृणित से घृणित समय में भी वमन के बा...
Sunday, May 26, 2019

आस्तीन

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वक़्त की दरकार यही है कि हम-आप अपनी आस्तीनें काट कर फेंक दे! इसलिए नहीं कि किसी ने दिया है आस्तीन धोने या इस्त्री करने में ज़्या...
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Sunday, April 28, 2019

तीसरी आँख थे एस. त्यागराजन

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जब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के किसी मंच पर कोई नाटक मंचित हो रहा होता, तो अभिनेता व प्रकाश/संगीत से संबद्ध कलाकारों और दर्शक के अलावा...
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